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पाखी

 पाखी, मेरा अकेलापन तू उस तक ले जाना, और बताना उसको कि कैसे इस तन्हाई में हमारी अधूरी कहानी की आवाज़ आती है। उसको ऐसा ना लगे कि मैं उदासी से ऐसा कह रहा हूँ, मुझे अब ये एकांत अच्छा लगता है, इसमें मैं ख़ुद को पा चुका हूँ,  गुमसूम सा अगर लगूँ तुम्हारी बातों में मैं उसको तो बताना कि  ये खामोशी भी पसंद है मुझे, पाखी तुम उस तक पहुँचा देना मेरा प्यार, और कहना कि डूबती नब्ज़ों से परे होगी मुलाकात तुमसे, फिर करेंगे जी भर के बातें, और दोहरा लेंगे सारे क़िस्से,  इससे पहले कि फिर मिलें दुबारा कहानी पूरी करने को। ©   जयेन्द्र दूबे 

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